स्तनधारियों में दाँत विषमदन्ती (heterodont) प्रकार अर्थात् अलग-अलग आकार व आमाप के पाये जाते है। ये चार प्रकार के होते हैं-
(1) कृन्तकः (Incisors)- ये ऊपरी जबड़े में प्रीमैक्सिला तथा निचले जबड़े की डेन्टरी अस्थि पर एक-दूसरे के सम्मुख पाये जाते हैं। ये एक मूल (जड़) वाले, लम्बे वक्र तेज धार वाले, चपटे छैनी समान, एक-दंताग्री (monocuspid) दाँत होते हैं। ये भोजन को पकड़ने, कुतरने एवं काटने के काम में लाये जाते हैं। लीमर्स के दाँत रोमिल त्वचा को साफ करने के काम में लाये जाते हैं अतः इनके कृन्तक दाँतों में कंघे के समान दंतिकाएँ पायी जाती हैं। हाथी के गजदन्त भी खुली जड़ वाले दाँत होते हैं, जो ऊपरी जबड़े पर स्थित होते हैं। स्लॉथ में कृन्तक पूर्णतः अनुपस्थित होते हैं, जबकि बैल में केवल ऊपरी जबड़े में अनुपस्थित होते हैं ।
चूहे एवं खरहों में दाँत खुली जड़ (open-rooted) वाले होते हैं। अर्थात जीवन पर्यन्त वृद्धि करते हैं।
(2) रदनक (Canines) - ये दोनों जबड़ों में कृन्तकों के बाहर की ओर स्थित होते हैं, ऊपरी रदनक मैक्सिला पर प्रथम दाँत होते हैं, ये लम्बे, एक मूलीय, शंक्वाकार, तेजधार वाले, एक दंताग्री (monocuspid) व शिखर युक्त होते हैं। ये शिकार को बेघने, चीरने व फाड़ने के काम में लाये जाते हैं। ये सुरक्षा व आक्रमण के समय भी उपयोग में लाये जाते हैं।
कुछ शाकाहारियों (चूहों) लैगोमार्फस (शशक) व अंगुलेट्स (बैल) में रदनक नहीं पाये जाते हैं। इनके कपोलों में इनके उपस्थित होने का स्थान खाली रहता है जिसे दन्तावकाश (diastema ) कहते हैं। जबकि मांसाहारियों (Carnivores) जैसे कुत्ते में ये बड़े, दृढ़ व भाले समान नुकीले होते हैं। ये मांस को छीलने के काम आते हैं। ये नरों में अपेक्षाकृत बड़े पाये जाते हैं। नर कस्तूरी मृग (musk ) में ये केवल ऊपरी जबड़े में पाये जाते हैं। वालरस (walrus) में बर्फ पर deer) चलने हेतु ऊपरी रदनक रद (tusk) बनाते हुए पाये जाते हैं।
(3) अग्रचवर्णक एवं चवर्णक (Premolars and Molars)-ये रदनक के पीछे उपस्थित होते हैं तथा इनके पीछे चवर्णक पाये जाते हैं, दोनों को संयुक्त रूप से कपोल-दन्त (cheek teeth) कहते हैं। इनके शिखर पर भोजन को पीसने (grinding) हेतु कटक (ridges) व गुलिकाएँ (tubercles) पायी जाती हैं। इनका तल भी चौड़ा होता है। अग्रचवर्णकों में प्राय: दो मूल (roots) व दो दंताग्र (cusps) पाये जाते हैं। चवर्णकों में सामान्यतः दो से अधिक जड़ें व दंताग्र पाये जाते हैं।
दंताग्रों (cusps) की संख्या, आकृति एवं व्यवस्था पर कपोल दन्तों की निम्न श्रेणियों में बाँटा गया है-
(a) वप्रदन्त (Bunodont)- ये उन स्तनियों में पाये जाते हैं जो मिश्रित प्रकार का भोजन लेते हैं, जैसे- वानर, मनुष्य, सूअर ।
(b) त्रिशंकुदन्त (Triconodont) - इस प्रकार के दाँत मीसोजोइक युग के स्तनियों में पाये जाते थे। इनके जीवाश्मों में इनका अध्ययन किया गया। है । इन दाँतों में एक सीधी रेखा में तीन शंकु पाये जाते हैं।
(c) त्रिगुलीय (Trituberculate)-इनका अध्ययन भी जीवाश्मों में ही किया गया है। इन दाँतों में तीन गुलिकाएँ या शंकु एक त्रिकोण बनाते हुए पाये जाते हैं।
(d) शशिदन्त (Selenodont) - ये चतुर्भुजाकार आकृति के दाँत होते हैं, जिनके शिखर पर डेन्टीन के कोमल क्षेत्रों को घेरते हुए इनैमल से बने अर्द्धचन्द्राकार दन्ताग्र पाये जाते हैं। इस प्रकार के दन्त शाकाहारी प्राणियों में मिलते हैं। उदाहरण-गाय, भैंस, घोड़ा आदि ।
(e) सैकोडॉन्ट (Secodont) - ये मांसाहारी स्तनियों में मिलते हैं। इनके दाँतों के किनारे तीखे होते हैं, जो मांस को चीरने एवं फाड़ने के काम आते हैं, इन्हें कारनेसियल दाँत (carnasial teeth) कहते हैं ।
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