स्तनियों का उद्विकास सरीसृपों से हुआ है। सरीसृप वर्ग के एक उपवर्ग सिनैप्सिडा (Sympsida) (विलुप्त) के प्राणियों में अनेक स्तनि लक्षण उपस्थित थे। ये लगभग 28 करोड़ वर्ष या अधिक पूर्व पर्मियन और ट्राइऐसिक काल (Permian and Triassic Period) में पाए जाते थे। इस उपवर्ग के गण थैरेप्सिडा (Therapsidhi) के प्राणी अधिक स्तनि समान थे। प्रथम वास्तविक स्तनि छोटे चूहे या मूषक के आमाप के प्राणी थी ये अपने समकालीन डायनोसोर की अपेक्षा महत्वहीन थे। ये रात्रिचर, कीटहारी बिलकारी या वृक्षवासी थे क्रिटेशियस कल्प के अन्त तक विशाल सरीसृपों का बाहुल्य समाप्त होने से इन स्तनि समान प्राणियों के समक्ष उपस्थित प्रतिस्पर्धा व संघर्ष भी समाप्त हो गया था। इनके लिए इन सरीसृपों के अनेक परिस्थितिक निकेत खुले पड़े थे जिनमें रहने के लिए इनमें महान अनुकूली विकिरण आरम्भ हुआ क्रिटेशियस काल के अन्त तक अपरापोषी स्तनि मासूपियल्स से भिन्न हो गए। सौनोजोइक ( आधुनिक) युग में अपरपोषी स्तानियों के समस्त गणों का विकास हुआ ये भिन्न-भिन्न पारिस्थितिक निकेत में भली-भांति स्थापित गए, अतः इसे स्तनियों का युग (Age of mammils) कहते है।
स्तनियों में अनुकूली विकिरण (Adaptive radiation in mammals) -
ऑसबर्न (Osborn) 1898 की प्रस्तावित अनुकूली विकिरण (adaptive radiation) की धारणा अनुसार किसी एक पूर्वजीय जाति से विविध रूपों अर्थात् अनेक नई जातियों का विकास होता है। ये विभिन्न आवासों में बस जाते है। इसे अनुकूली विकिरण (adaptive radiation) या अपसारी विकास (divergent evolution) कहते है। अनुकूली विकिरण के प्रमाण के रूप में स्तनियों की विविध प्रकार की पाद संरचनाओं तथा आस्ट्रेलिया में पाए जाने वाले मासुपिएल्स के उदाहरण दिए जाते है।
विशिष्ट आवासों हेतु स्तनियों में अनुकूली विकिरण आद्य स्तनि पूर्वज आधुनिक मंजोरु या शृ ( Shrew) समान थलचारी प्राणी थे। इसके पैर छोटे थे। इनमें पांच अंगुलियां थी। गमन पादलचारी (plantigrade) या चपटे तलवे द्वारा किया जाता था पादों में अन्य कोई विशिष्टता नहीं थी। इस स्तम्भ स्तनि (stem mammal) से आवासीय भिन्नताओं के अनुरूप पार्दो व अन्य सरंचनाओं में रूपान्तरण होते चले गये एवं अनेक आधुनिक रूप विकसित हुए है। गमन हेतु पांच मूल प्रतिरूप दौड़ना या धावकीय (running), बिल खोदना या खनन (fossrial or burrowing). वृक्षारोहण ( climbing), उड्डयन (flying) तथा तैरना (swimming) पाये जाते हैं। इनके अनेक रूपान्तरण स्तनियों में देखने को मिलते हैं जिनमें चलना (Walking) कूदना (jumping), छलांगे लगाना (leaping), लटकना (hanging), विसर्पण (glinding) तथा उभयचारी ( amphibious) प्रमुख हैं। चित्र में विशेष आवासों हेतु स्तनियों में पादों अर्थात् गमन, दांतों एवं आहारनाल (भोजन) आदि अन्य लक्षणों की प्रमुख अनुकूलताओं को दर्शाया गया है।
स्तनियों में अनुकूली अभिसरण (Adaptive convergence in mammals) -
विभिन्न जातियों के तथा दूर के सम्बन्धित जन्तुओं में एक जैसे समान वातावरण में रहने के कारण समान आकारिकीय लक्षण उत्पन्न हो जाते है अतः ये समान दिखाई देने लगते हैं। यहीं नहीं इनके अन्तरांग व कार्यिकी में अनेक समानताएं पाई जाती हैं। इस परिघटना को अनुकूल अभिसरण (adaptative convergence) कहते हैं. यह अनुकूली चिकिरण के विपरीत होने वाली क्रिया है। उदाहरणत अनेक जन्तु जो जल में रहते हैं जो निकट सम्बन्धी नहीं है किन्तु समान लक्षण रखते हैं, जैसे अस्थिल मछली, उपरिथल मछली डालफिन (स्तनी), समुद्री कछुआ (सरीसृप), सील (स्तनि) ब्लू व्हेल (स्तन) प्लेसिओसॉर एवं इक्यिओसॉर दोनों विलुप्त सरीसृप तथा हेस्पेरोनिस (विलुप्त पक्षी) सभी जन्तुओं में धारारेखित देह मछली समान या आकृति पतवार समान पाद, जालदार अंगुलियाँ इत्यादि समान लक्षण पाए जाते है जो एक समान व निकट सम्बन्धी प्रतीत होते है किन्तु वास्तव में ये जलीय अनुकूलन हेतु समान वातावरण में रहने के कारण विकसित हुए है।
अपरापोषित यूरिया व मापियन स्तनियाँ में अनुकूल अभिसरण (Adaptive Convergence in placental eutherians and marsupial mammals) -
पैलिओसीन इओसीन और ओलिगोसीन कल्पों के समय आस्ट्रेलिया में मासूपियल्स तथा शेष विश्व में अपरापोषियों (placentals) में बहुत अधिक अनुकूली विकिरण विकसित हुआ ये डाइनोसॉर्स के विलोपन के उपरान्त खाली हुए आवास में रहने लगे मासूपियल व अपरापोषीय बहुत निकट सम्बन्धी नहीं है। किन्तु अभिसारी विकास के कारण दोनों समूह के सदस्यों में समान पारिस्थितिकीय निकेतों में रहने एवं समान प्रकृति का जीवन व्यतीत करने के कारण समान रूप में दिखाई देते है। आस्ट्रेलिया के मूल निवासी भेड़िये, चूहे, बिलियां चींटीखोर, छछूंदर क्लाथ व उड़नशील छिपकलियां व वाम्बैट्स जो अपने प्रतिपक्षी वास्तविक अपरापोषित स्तनियाँ से सम्बन्धित नहीं होते किन्तु अभिसारी विकास के कारण उनके समान ही दिखाई देते हैं ।। आस्ट्रेलिया के भौगोलिक वियोजन (geographical isolation) से इसे स्पष्ट किया जा सकता है। यह वियोजन महाद्वीपीय विस्थापन (continental drift) के कारण उस समय हुआ जब एक समान पूर्वज (common ancestor) से दो दिशाओं में मासूपियल्स यूथीरियन अपरापोषी स्तनियों का विकास हो रहा था। (क्रिटेशियश काल में लगभग 120 लाख वर्ष पूर्व) आस्ट्रेलिया में मार्सपियर का उद्विकास सफलतापूर्वक बिना किसी स्पर्धा में यूथीरियन स्तनियों में हुआ।
चींटीखोरों स्तनियों में अनुकूली अभिसरण (Adaptive convergence in Anteaters) -
इसी प्रकार चींटीखोर (Ant eaters) स्तनि वर्ग के विभिन्न गणों मे पाए जाते हैं जो दीमक व चींटी का भक्षण करते है। ये निकट सम्बन्धी भी नहीं है किन्तु इनका भोजन एक समान होता है अतः आहार ग्रहण करने व आहार को पचाने हेतु समान लक्षण या अनुकूलन इनमें देखने को मिलते है। इनमें हासित दाँत, लम्बी शुंडिका(proboscis ) लम्बी बहिवर्तनशील चिपचिपी जिव्हा, दीमक या चीटी प्राप्त करने हेतु इनके गहो को खोदने हेतु अग्रपाद पर तीखे नुकीले सुदृढ़ पंजे पाए जाते है। ये सभी प्राणी स्वतंत्र रूप से विभिन्न स्त्रोतों से चींटी न खाने वाले पूर्वजों से विकसित हुए हैं। उदाहरण कॉटेदार चींटी खोर इकिडना टेकीग्लॉसस (Tachyglossus) आर्डवार्क आरिक्टेरोपस (Orycteropus), पैंगोलिन या शल्की चींटी खोर मेनिस (Manis) तथा ग्रेट एन्ट इटर मिरमेकोफेगा (Myrmecophaga) ।
अनुकूली विकिरण के कारण (Causes of adaptive radiation)
प्राणियों में अनुकूली विकिरण के मुख्य है-
भोजन की आवश्यकता
आवास व सुरक्षा की आवश्यकता
इन कारणों से एक पूर्वजीय जाति से अनेक नई जातियों का विकास होता है, जो कालान्तर में विभिन्न आवासों में वरनने के कारण एक-दूसरे से भिन्न दिखाई देते है।
सारांश (Summary) -
सजीव प्राणियों में आश्चर्यजनक रूप से सुरक्षा व भोजन प्राप्ति के लिए सुघट्यता (plasticity) पाई जाती है जिसके कारण ये समय के साथ पश्थ्वी की विभिन्न परिस्थितियों (वायु, जल आदि) में भी अपने आप को स्थापित कर पाते है इसका कारण है कि इनके शरीर में पाए जाने वाले विभिन्न अनुकूलन जो कि मुख्यत सुरक्षा (पाद-गमन) व भोजन (दांत) के लिए होते है। कालान्तर में ये प्राणी जो कि एक पूर्वजीय जाति से उत्पन्न हुए ये अलग-अलग जातियों में विकसित हो जाते है तथा एक-दूसरे से भिन्न दिखाई पड़ते है इसे ही अनुकूली विकिरण या अपसारी विकास (adaptive radiation or divergent evolution) कहते है यह मुख्यतः स्तनियों में देखने को मिलते है।
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