कशेरुकियों में हृदय परिवर्धन को समझाइये।(Explain heart development in vertebrate.) :-
कशेरुकियों में हृदय परिवर्धन-हृदय, भ्रूण में मीजनकाइम (mesenchyme) कोशिकाओं से विकसित होता है। ये कोशिकाएँ ग्रसनी के नीचे मीजोडर्म उत्पन्न करती हैं। मीजनकाइस कोशिकाओं के इस समूह को अन्तहृद कोशिकीय आद्यावशेष (endocardial rudiment) कहते हैं। अंतहृद कोशिकाएँ जल्दी ही स्वयं को इस प्रकार व्यवस्थित कर लेती हैं कि इनसे एक अंतहृद नलिका बन जाती है। इस क्रिया के पूर्व ही एक जोड़ी देह गुहिक अवकाश मीजोडर्म में परिवर्धनशील हृदय के नीचे प्रकट होती है। जल्दी ही इन दोनों देह गुहिक अवकाश के मध्य उपस्थित पट्ट गायब हो जाता है। अतः दोनों देह गुहिक अवकाश समेकित होकर एक सतत् गुहा परिहृद निर्मित होती हैं जो अंत हद नलिका के नीचे स्थित होती है। परिहृद धीरे-धीरे अंत हृद नलिका के चारों ओर वृद्धि करती है। इसकी आन्तरिक भित्ति जो आन्तरांगी मीजोडर्म होती है, अंत में हृद नलिका से समेकित हो जाती है। यह आन्तरांगी मीजोडर्म एपीमायोकार्डियम (epimyocardium) कहलाती है। यह दो स्तरों में विभेदित हो जाती है। भीतरी पेशीय स्तर पर मायोकार्डियम तथा बाह्य उपकरलीय स्तर एपीकार्डियम या आन्तरांगी पर्युदया (viseral peritoneum) कहलाती है। अंतः हृद नलिका की कुछ कोशिकाएँ एन्डोकार्डियम नामक उपकलीय स्तर मायोकार्डियम के अन्दर बनाती है। आरम्भिक हृदय एक सीधी लम्बवत्। मध्य अधर नलिका के रूप में परिहृद के भीतर स्पेक्लनिक मीजोडर्म के दोहरे स्तर जिसे पृष्ठीय मीजोकार्डियम कहते हैं, द्वारा लटका रहता है। यह मेसेन्ट्री द्विस्तरीय आतरांगी पर्युदर्या से ही विकसित होती है।
उपर्युक्त विधि से हृदय का परिवर्धन मछलियों व एम्फीबिया में होता है। अस्थिल मछलियों (teleosts) व एम्निओट्स (सरीसृप व पक्षियों) में हृदय के निर्माण में एक जोड़ी पीतक शिराएँ (vitelline veins) पास आकर अंत हृदय नली बनाती है जो परस्पर समेकित हो जाती है। मुर्गों के भ्रूण में एण्डोडर्म व स्प्लैक्निक मीजोडर्म के मध्य मीजनकाइम कोशिकाओं के एकत्र होकर एण्डो कार्डियल आद्यावशेष बनने से हृदय का परिवर्धन शुरू होता है। ये कोशिकाएँ वृद्धि कर दो एन्डोकार्डियल नलियाँ बनाती हैं। दोनों एन्डोकार्डियल नलियाँ मध्य रेखा की ओर बढ़ती हुयी परस्पर मिल कर एक एन्डोकार्डियल नलिका बना कर हृदय का निर्माण करती हैं।
स्तनधारियों में हृदय का परिवर्धन एक मीजोडर्म की अर्ध चन्द्राकार प्लेट जिसे हृद पट्टिका (cardiogenic plate) कहते हैं से शुरू होता है। यह भ्रूण के अग्र मस्तिष्क के आगे के क्षेत्र में पायी जाती हैं। इस पट्टिका से के दो गुच्छ प्रकट होते हैं जो विकसित होकर दो। नलिकाओं का रूप ग्रहण कर लेते हैं। ये दोनों नलिकाएँ मिलकर एक एण्डोकार्डियल नलिका बनाती हैं जो हृदय में विकसित हो जाती है।
हृदय परिवर्धन की प्रारम्भिक अवस्था में सरल लम्बवत् नली के समान होता है। परिहद के दोनों सिरों के स्थिर होने के कारण हृदय नलिका वक्र होकर 'S' आकृति की हो जाती है।
हृदय नलिका में प्रथम मोड़ दायीं ओर होता है। यह जल्दी ही अध महाधमनी से जुड़ जाती है। युग्मित धमनी चापें अधर महाधमनी से विकसित होती है एवं पृष्ठीय धमनियाँ (dorsal aortae) जो ऊपर विकसित होती हैं से जुड़ जाती है। पीछे की ओर हृदय पीतक शिराओं से सतत् रूप से जुड़ा रहता है।
अंतहृद नलिका (endocardial tube) अथवा आरम्भिक हृदय एवं इसको आवरित करने वाली मायोकार्डियम कुछ कक्षों में विभेदित होती है। इसमें कपाटों के निर्माण के साथ चार कक्ष बनते हैं। ये कक्ष पश्च सिरे से अग्र सिरे की ओर क्रम से शिरा कोटर (sinus venosus), आलिन्द या एट्रियम, निलय तथा धमनी शंकु होते हैं। इनमें पेशी स्तर का विकास भी उत्तरोत्तर इसी क्रम में अधिकतम होता है। इसी कारण हृदय से बाहर आते हुए रक्त में रक्त का दाब इस प्रकार बढ़ता है कि यह कशेरुकी की पूरी लम्बाई में दूरस्थ सिरे पर उपस्थित अंग को भी रक्त का वितरण करने में सक्षम होता है। संकुचित (contracted) या शिथिल (relaxed) अवस्था में हृदय की पेशियाँ इतनी फैली रहती है कि यह अपने सामान्य आमाप में बना रहता है। प्रथम कक्ष शिरा कोटर (sinus venosus) में पेशी स्तर दुर्बल या अल्प विकसित होता है। इसके संकुचन से रक्त आलिन्द (auricle) में आता है। आलिन्द शिरा कोटर से बड़ा व अपेक्षाकृत अधिक पेशीय कक्ष होता है। पेशीय आलिंद के संकुचन से रक्त अत्यधिक पेशीय कक्ष निलय (ventricle) में आता है। निलय आलिन्द की अपेक्षा अधिक पेशीय व बड़ा कक्ष होता है। यह धमनी शंकु (conus arteriosus) में खुलता है। धमनी शंकु छोटा किन्तु अधिक पेशीय कक्ष होता है। निलय तथा धमनी शंकु आवश्यक दाब से रक्त को देह के विभिन्न भागों में वितरण हेतु प्रेषित करते. धमनी शंकु आगे की ओर अधर महाधमनी से जुड़ा रहता है। कुछ जैसे मछलियों में अधर महाधमनी फूलकर बलबस कॉर्डिस (bul- bous cordis) या बलबस आर्टिरिओसस (bulbousarteriosus) बनाती है। यह हृदय का भाग नहीं होता इसमें हृदय पेशियाँ अनुपस्थित होती हैं।
हृदय के विभिन्न कक्षों के मध्य विकसित कपाट (valve) रक्त का एक तरफ प्रवाह (one way flow) बनाये रखने में प्रमुख भूमिका रखते हैं। ये रक्त प्रवाह को विपरीत दिशा में नहीं होने देते। आलिन्द व निलय के मध्य अंतः हद रक्त का प्रवाह हृदय में निम्न प्रकार से होता है-
शिराकोटर —> आलिन्द —> निलय —> धमनी शंकु —> अधर महाधमनी
नलिका से आलिन्द निलय कपाट (atrio ventricular valve) बन जाता है। कुछ और कपाट धमनी शंकु (conus arteriosus) के अन्दर बनते हैं। हृदय की पेशियों को रक्त कोरोनरी धमनी द्वारा वितरित किया जाता है। धमनी पोषण पदार्थों व ऑक्सीजन का वितरण करती है एवं कोरोनरी शिरा हृदय पेशियों से अशुद्ध रक्त एवं उत्सर्जी पदार्थ एकत्रित करती है।
साइक्लोस्टोम्स व मछलियों के हृदय में एक पतली भित्ति वाला शिरा कोटर (sinus venosus), आलिन्द, निलय तथा धमनी शंकु पेशीय कक्ष के रूप में पाये जाते हैं। धमनी शंकु बलबस आर्टिरिओसस में खुलता है। इसका सम्बन्ध अधर महाधमनी से होता है। हृदय में आलिन्द-निलय कपाट आलिन्द व निलय के मध्य तथा कुछ कपाट धमनी शंकु में पाये जाते हैं। धमनी शंकु व शिरा कोटर अस्थायी कक्ष होते हैं। उच्चतर कशेरुकियों में आलिन्द व निलय पुनः विभाजित होते हैं। उच्चतर कशेरूकियों में शिरा कोटर दाहिने आलिन्द में विलीन हो जाता है। इसी प्रकार एम्फिबिया व सरीसृपों में त्रिकक्षीय हृदय पाया जाता है। इनमें दो आलिन्द व एक निलय होता है। क्रोकोडाइल्स, पक्षियों व स्तनियों में हृदय चार कक्षीय होता है। इनमें निलय दो भागों में विभक्त हो जाता है।
कशेरुकियों एवं मॉलस्क जन्तुओं में हृदय मायोजेनिक (myogenic) प्रकार का होता है जबकि क्रस्टेशिया व कीटों में यह न्यूरोजेनिक (neuro- genic) प्रकार का पाया जाता है। मायोजेनिक प्रकार हृदय में संकुचन की लहर विशिष्ट पेशी समूह से उठती है व तरंग के रूप में हृदय पेशियों में फैल जाती है। ये विशिष्ट पेशी समूह पेसमेकर (pacemaker) का निर्माण करती हुई पायी जाती हैं। न्यूरोजेनिक हृदय में तन्त्रिका गुच्छक व तन्त्रिका कोशिकाएँ हृदय पृष्ठ सतह पर पायी जाती हैं जो पेशी संकुचन हेतु आवेग प्रदान करती है।
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