नर मछली (स्कोलियोडॉन ) एवं नर एम्फीबिया (मेढ़क ) के मूत्रजनन तंत्र में अन्तर-
स्कोलियोडॉन (कुत्ता मछली) का जनन मूत्र तंत्र (Urinogenital system of Scoliodon Dog Fish) :
स्कोलियोडॉन में लिंग पृथक होते है तथा लैंगिक द्विरूपता स्पष्ट होती है नर कुत्ता मछली के श्रोणि-पंख के मध्यस्थ भाग में मैथुन के समय शुक्राणुओं के स्थानान्तरण के लिये आलिंगकों (claspers) में रूपान्तरित हो जाते है।
नर मूत्रजनन तंत्र (Male Urogenital System)
उत्सर्जन अंग (Excretory Organs) –
नर स्कोलियोडॉन में एक जोडी लम्बी, चपटी, रिबन सदृश, मध्य वृक्की (mesonephric) वृक्क इसके उत्सर्जी अंग है। ये देह गुहा के पृष्ठ भाग में मध्य रेखा के दोनों पार्श्वो पर व्यवस्थित होते है। ये देह गुहा की सम्पूर्ण लम्बाई अर्थात यकृत के अग्र भाग से लेकर पश्च में अवस्कर तक फैले रहते है। प्रत्येक वृक्क दो भागों में बंटा होता है। अग्र भाग अल्प विकसित, अ-उत्सर्जी अपेक्षाकृत संकरा और जनन कार्य करने के कारण अधिवृषण (epididymus) कहलाता है। पश्च भाग अत्यन्त विकसित, उत्सर्जी अपेक्षाकृत मोटा तथा क्रियात्मक वयस्क वृक्क बनाता है। इसे उत्तरवृक्क (opisthohephros ) कहते है। प्रत्येक उत्तरवृक्क केशिका गुच्छ (glomerulus) को घेरते हुए बोमन संपुट (Bowman's capsule) सहित अनेक कुण्डलित ग्रंथिल मूत्रजन नलिकाओं (uriniferous ) का बना होता है। नलिकाओं में विशेष यूरिया- अवशोषण खंड होते है। समस्त संग्रह नलिकायें (collecting tubes) एक पतली भित्ती वाली मूत्र वाहिनी (ureter) में खुलती है। दोनों मूत्रवाहिनियाँ पीछे एक चौड़े मध्यस्थ मूत्रजनन कोटर (urinogenital sinus) में खुलती है। मूत्र जनन कोटर स्वयं एक छोटे मूत्रजनन पैपिला के सिरे पर स्थित अपने ही छिद्र द्वारा अवस्कर में खुलता है।
नर जनन अंग (Male Reproductive System) –
एक जोड़ी बड़े एवं लम्बे वृषण, नर जनन अंग है जो वृषणधर (mesorchium) नामक पर्युदर्या (periotoneum) की दोहरे वलन द्वारा पृष्ठ उदरीय भित्ती से संलग्न होते है। दोनों के पश्च सिरे एक अ-ग्रंथिल ऊतक द्वारा एक अंधनाल अथवा मलाशय ग्रंथि (caecal or rectal gland) से जुडे रहते है। प्रत्येक वृषण से अनेक अत्यन्त सूक्ष्म शुक्रवाहिकार्ये (vasa efferentia) निकलती है जो वृषणधर में होकर एक बड़ी मध्यवृषक वाहिनी (mesonephric duct) के अग्र छोरे पर खुलती है, जो अब शुक्रवाहक (vas deferens) कहलाता है। वृषण की शुक्रजनक नलिकाओं (seminiferous tabules) में जनन कोशिकाओं (germo cello) द्वारा उत्पन्न शुक्राणु शुक्रवाहक में ले जाये जाते है। शुक्रवाहक एक बहुत लम्बी संकरी तथा अत्यधिक कुण्डलेत नलिका होती है जो कि वृक्क के अधिवृषण के सम्पूर्ण अधरतल पर होती है। यह शुक्राणुओं के पोषक तरल उपलब्ध कराता है। पश्च भाग में शुक्रवाहक फैल कर एक चौड़ी, सीधी नलिका शुक्राशय (seminal Vesicle) बनाता है, जिसमें शुक्राणु संग्रहित रहते है। दोनों तरफ के शुक्राशय पीछे की तरफ मूत्रजनन कोटर में अपने अलग-अलग छिद्रों द्वारा खुलते है और यह अवस्कर में खुलता है। मूत्र जनन कोटर से आगे की ओर दोनों तरफ एक-एक लम्बे मुग्दर-सदृश शुक्राणु कोष (sperm sales) निकलते है। आलिंगक (claspers) तथा विनाल (siphon ) नर जनन तंत्र के अतिरिक्त भाग है।
आलिंगक नर स्कोलियोडॉन के श्रोणि पंखो पर स्थित होते है। मैथुन के समय यह प्रवेशी अंगो का कार्य करते है। प्रत्येक आलिंगक में एक बंद खीच होती है जिसका अग्र छिद्र (apopyle) अवस्कर के पास स्थित होता है तथा पश्च या अपद्वारा छिद्र अधोद्धार (hypopyle) कहलाता है।
एक जोडी सायफन देह के अधर भाग में त्वचा के ठीक नीचे स्थित होते है। ये लम्बे पेशीय कोष होते हैं जो अंस पंखो से आलिंगक के आधार तक फैले होते है। अग्र सिरे पर ये बंद होते है किन्तु पश्च में प्रत्येक साइफन अपने ओर के आलिगक के मध्यस्थ खीच में खुलता है। ये समुद्री जल से भरे होते है तथा मैथुन के समय शुक्राणुओं को आलिंगक के खीच से मादा के अवरकर मे बहाकर (flush) पहुँचाने का कार्य करते है।
मेंढक (राना) का जनन मूत्र तंत्र (urinogenital system of frog rana) :
उत्सर्जी और जनन तंत्र कार्यानुसार संबंधित नहीं होते है। परन्तु नरों में उत्सर्जी उत्पाद (मूत्र) और उसके साथ जननीय उत्पाद (शुक्राणु) सह जनन मूत्र वाहिनियों (common urinogenital ducts) से बाहर निकलते है। मेंढक में लिंग पृथक होते है। नर का मादा से उसके अपेक्षाकृत छोटे परिमाण, ध्वनि कोष की उपस्थिती तथा अंगुलियों पर उपस्थित मैथुनीय गद्दीयों के द्वारा विभेदित किया जाता है।
[1] उत्सर्जी तंत्र (excretory system):
नर और मादा दोनों में उत्सर्जी तंत्र समान होता है। इसमें एक जोड़ा वृक्क, उनकी वाहिनियाँ (ureters ), एक मूत्राशय तथा एक अवस्कर सम्मिलित होते है।
वृक्क (Kidney) :
वृक्क मध्य वृक्की (mesonephric) होते है। जो उदर में कशेरूक दण्ड के दोनों ओर सीलोम से बाहर उपकशेरूकीय लसीका स्थानों (sub vertebral lymph spaces ) में व्यवस्थित होते है। वृक्क लम्बे, चपटे और लाल-भूरे रंग की संरचना है। इनका बाहरी किनारा चिकना व उत्तल तथा भीतरी किनारा खाँचेदार (notched ) एवं सीधा होता है। प्रत्येक वृक्क के अधर तल पर एक लम्बी संकीर्ण पीली अतः स्त्रावी एड्रीनल ( adrenal) ग्रंथि होती है। प्रत्येक वृक्क के अग्र छोर पर अनेक अंगुली - सदृश्य वसा काय तथा नर में एक वृषण अथवा मादा में एक अंडाशय संलग्न रहते है।
ओतिकीय संरचना (historical structure ) :
प्रत्येक वृक्क में संयोजी ऊतक में धँसे असंख्य अत्यन्त कुण्डलित मूत्रजन नलिकाओं (uriniferous tubules) या वृक्काणुओं (nephrons) तथा रूधिर वाहिनियों का एक घना पिंड होता है। मूत्रजन नलिकाये वृक्क की क्रियात्मक इकाईयाँ होती हैं। ये ग्रंथिल तथा कई स्थानों पर पक्ष्मामी एपिथीलियम द्वारा आस्तरित होती है। प्रत्येक नलिका का समीपस्थ सिरा एक संकीर्ण छिद्र युक्त दोहरी भित्ती की प्याले नुमा रचना बनाता है। जिसे बोमन संपुट (Bowman's capsule) कहते हैं। यह केशिका गुच्छ (glomrerulus) नामक बारीक केशिकाओं के गुच्छे को बंद रखता है। संपुट और केशिका गुच्छ साथ मिलकर एक वृक्क पिंडाणु यार मैलपीगी काय (Malpighian body) बनाते है। वृक्क धमनी की एक छोटी अभिवाही (afferent) शाखा केशिका गुच्छ में रुधिर ले जाती है जबकि वृक्क शिरा से मिलने वाली एक अपवाही (efferent) शाखा केशिका गुच्छ से रूधिर को बाहर ले जाती है। प्रत्येक मूत्र नलिका तीन भागों में बंटी होती है।
(1) बोमन समुट ( 2 ) ग्रीवा (3) काय (body)
बोमन समुट एक दोहरी भित्ती वाली प्याली होती है। जिसकी गुहिका शल्की उपकला द्वारा रेखित होती हैं। बोमन समुट एक छोटी ग्रीवा से संयोजित रहता है। जिसकी गुहिकामाभी घनाकार उपकला द्वारा रेखित होती है। नलिका का शेष कुण्डलित लम्बा भाग काय कहलाता है। काय की गुहिका ग्रंथिल घनाकार उपकला द्वारा रेखित होती है। काय, वृक्क, निवाहिका शिरा (renal portal vein) के एक केशिका जाल से घिरी रहती है। सभी मूत्र नलिकाये संग्रह नलिकाओं (collecting tubules) में खुलती है, जो वृक्क के आर पार पृष्ठ तल के नजदीक अनुप्रस्थ दिशा में चलती है। समस्त अनुप्रस्थ संग्राहक नलिकायें वृक्क के भीतर किनारे की और एक अनुदैर्ध्य बिडर नाल (bidder's canal) तथा बाहरी किनारे की ओर एक अनुदैर्ध्य मूत्रवाहिनी (ureter) में खुलती है। प्रत्येक वृक्क के अधरतल पर अनेक वृक्कमुख (nephrostomes ) नामक रोमाभी कीप होते है। जो देह गुहा से अपशिष्ट पदार्थों का वहन करते है और वयस्क मेंढक में वृक्क शिराओं ( renal venules ) से या भेकशिशुओ से मूत्रजन नलिकाओं से जुड जाते है।
मूत्रवाहिनियाँ (ureters) :
प्रत्येक वृक्क के पश्च बाहरी किनारे से एक मूत्रीय (urinary) या वोल्फी वाहिनी निकलती है जो कि अत्यन्त पतली सफेद की होती है व पीछे की ओर चलकर अव्स्कर (eloaca) की पृष्ठ भित्ती में खुलती है। नर मेंढक की मूत्र वाहिनियाँ जनन मूत्र वाहिनियाँ कहलाती है क्योंकि वे शुक्राणुओं के साथ साथ मूत्र भी बाहर निकालती है।
मूत्राशय (urinary bladder) :
यह एक अपेक्षाकृत बड़ी, महीन भित्ती वाली, पारदर्शक, द्विपालित अत्यंत प्रसार्थ थैली सदृश्य संरचना होती है जो कि अवस्कर की अधर-भित्ती में एक अवरोधनी युक्त छिद्र द्वारा खुलता है।
अवस्कर (cloaca) :
यह एक छोटा मध्यवर्ती कक्ष होता है जिसमें गुदा, जनन मूत्र छिद्र और मूत्राशय खुलते है। अवस्कर एक अवरोधिनी युक्त अवस्कर - छिद्र द्वारा नियंत्रित रहता है व बाहर की ओर खुलता है।
मेंढक एक यूरियोटेलिक (ureotelic) जंतु है क्योकि इसका प्रमुख उत्सर्जी पदार्थ यूरिया होता है। जो जल में घुली दशा में तरल मूत्र के रूप में देह से उत्सर्जित किया जाता है।
[2] नर जनन तंत्र (Male Reproductive System) :
नर जनन तंत्र में वृक्कों से संलग्न दो वृषण अनेक शुक्रवाहिकायें और दो जनन मूत्र नलिकाये होती है। मैथुनी अंग अनुपस्थित होते है।
वृषण :
ये छड़ रूपी, हल्के पीले रंग के होते है। जो प्रत्येक वृक्क के अग्र अधर तल से पर्युदर्या (peritoneum ) के एक दोहरे वलन, वृषणधर (mesorchium) द्वारा संलग्न रहते है। वृषण के अग्रछोर के निकट अंगुली - सदृश अनेक शाखित वसाकाय निकलते है। जो विकसित होते शुक्राणुओं का तथा शीत निष्कियता के समय वयस्क का पोषण करते है।
ओतिकीय संरचना :
प्रत्येक वृषण अत्यन्त कुण्डलित शुक्रजन नलिकाओं (seminiferous tubules) का एक सघन पिंड होता है जिनका एपीथिलियम अस्तर शुक्राणु जनन द्वारा शुक्राणु उत्पन्न करता है। परिपक्व शुक्राणु एक छोटा गोल ऐक्रोसोम या अग्रपिंडक एक लम्बा बेलनाकार केन्द्रक युक्त सिर, एक छोटा तारक केन्द्रों और माइटोकोन्द्रिया युक्त मध्य खंड तथा एक अत्यधिक दीर्घित पश्च चल पूँछ होती है, जो एक कशाभिका में समाप्त होती है। शुक्र नलिकाओं के बीच अंतराली ऊतक उपस्थित होता है। जिसके संयोजी ऊतक में रक्त केशिकाएँ, तंत्रिका तंतु तथा विशिष्ट अंतःस्त्रावी अंतराली अर्थात लैंडिग कोशिकायें (intestine or Leydig cells) उपस्थित होती है। ये नर हार्मोन (एण्ड्रोजन) का स्त्रवण करती है।
शुक्रवाहिकायें (Vasa efferentia) :
एक वृषण की समस्त शुक्रजन निलिकायें जुडकर 10 या 12 संकीर्ण नलिकायें या शुक्रवाहिकायें बनाती है। ये वृषण के भीतरी किनारे से निकल कर वृषणघर (epididymis) में होती हुई वृक्क के भीतरी किनारे में पहुँचकर बिडर नाल में प्रवेश करती है। बिडर नाल वृक्क की संग्राहक नलिकाओं द्वारा मूत्रवाहिनी से संबंधित होती है। इस प्रकार शुक्र वाहिकाये परिपक्व शुक्राणुओं को वृषण से वृक्क की मूत्र वाहिनी में ले जाती है।
जनन-मूत्र वाहिनियाँ (urogenital ducts) :
नर मेंढक में मूत्रवाहिनी एक मूत्रनलिका व शुक्राणुओं दोनों का संवहन करती है। इसलिये इसे जनन मूत्र वाहिनी कहते है। दोनों ओर की वाहिनियाँ अवस्कर की छत में पृथक-पृथक जनन मूत्र अंकुरों पर खुलती है। जनन काल में मैथुन-क्रिया के अन्तर्गत शुक्राणु अवस्कर से बाहर निष्कासित किये जाते है।
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