बाल अर्थात् रोम (Hair) - पृष्ठवंशियों में सिर्फ स्तनियों के बाल पाये जाते हैं। अधिकतर स्तनियों में समस्त खाल पर बाल होते हैं लेकिन कुछ में बालों के केवल लेश-चिह्न ही पाये जाते हैं, जैसे कि ह्वेल में केवल कुछ मोटे बाल थूथन पर पाये जाते हैं। समस्त मैमल में भ्रूणीय विकास के समय पूरे शरीर पर हथेलियों और तलवों को छोड़कर सूक्ष्म बालों की एक पर्त पाई जाती है जिसे गर्भ-रोम (lanugo) कहते हैं। ये बाल जन्म से पूर्व ही झड़ जाते हैं। कभी-कभी शरीर पर असामान्य रूप से अधिक बाल होते हैं, ऐसी स्थिति को अतिशूकीयता (hypertrichosis) कहते हैं ओर कभी बाल होते ही नहीं हैं, इस अवस्था को अशूकियता (atrichosis) कहते हैं।
संरचना (Structure) :- बाल पूर्ण रूप से एपिडर्मिस के सजीव एवं सक्रिय मैलिपगी स्तर से बनते हैं। इसके निम्नलिखित भाग होते हैं।
(1) रोम पुटक (Hair follicle) : रोम पुटक मैलिपगी स्तर का सिलिका के समान अन्तर्वलन (invagination) होता है जो डर्मिस में धँसा रहता है (चित्र)। इसका निचला भाग फूलकर थैली के आकार की रचना बनाता है। प्रत्येक रोम पुटिका की भित्ति दो स्तरों से बनी होती है- डर्मिस का बाहरी स्तर जो तन्तुमय (fibrous) होता है तथा एपिडर्मिस का कोशिकीय (Cellular) भीतरी स्तर। रोम पुटक में रोम का जड़ भाग धँसा रहता है। जड़ के ऊपर का भाग गाँठ के रूप में फूलकर रोम बल्ब बनाता है। प्रत्येक रोम पुटक में एक सिबेशस ग्रन्थि खुलती है, जिनका तेलीय स्रवण बालों को चिकना बनाता है।
(2) रोम जड़ (Hair root) : राम जड़ रोम पुटक में धँसा हुआ भाग होता है अर्थात् यह डर्मिस में स्थित रहता है। रोम पुटक की तली वाली कोशिकायें अत्यन्त सक्रियता से विभाजित होती रहती हैं तथा यह क्षेत्र रोम जड़ कहलाता है। बाल की सम्पूर्ण वृद्धि जड़ से होती है।
(3) डर्मल पैपिला (Dermal papilla) : रोम पुटक का निचला भाग भीतर की ओर धँसकर एक छोटा सा गड्ढा बनाता है जिसमें डर्मिस द्वारा निर्मित रक्त कोशिकाओं का गुच्छा स्थित रहता है। इस गुच्छे को डर्मल पैपिला कहते हैं तथा यह रक्त कोशिकाओं द्वारा रोम की जड़ों को | पोषक पदार्थ पहुँचाता है। पोषण प्राप्त करके जड़ा की कोशिकायें लगातार विभाजित होती रहती हैं तथा रोम में वृद्धि होती रहती है ।
(4) रोम काण्ड या शेफ्ट (Hair Shaft) : रोम का त्वचा से बाहर निकला भाग रोम काण्ड कहलाता है ये त्वचा से एक न्यूनकोण में बाहर निकलते हैं। शेफ्ट रोमपुटक में स्वतन्त्र रूप से स्थित रहता है तथा लम्बा होता है। यह मृत शृंगीय कोशिकाओं का बना होता है। काण्ड के दो भाग होते हैं-
(i) मेडयूला (Medulla) : यह शेफ्ट का केन्द्रीय अन्तःभाग होता है कोशिकाओं और बड़े वायु कोशों (airspaces) द्वारा निर्मित होता है। इसकी एक छड़ के समान रोम का भीतरी भाग बनाता है। मेड्यूला शृंगित कोशिकायें छोटी एवं सटी हुई होती हैं।
(ii) कॉर्टेक्स (Cortex) : यह शेफ्ट का बाहरी-चौड़ा सतर होता है जो मेडयुला के बाहर स्थित रहता है। कॉर्टेक्स की श्रृंगी कोशिकाओं में की वर्णक या रंगा कणिकाएँ (pigment granules) पायी जाती हैं। जिनसे बालों का रंग काला या गहरा भूरा होता है। कॉर्टेक्स में कुछ वायु कोश पाये जाते हैं तथा इसका बाहरी स्तर पारदर्शी, चपटी, कोरछादी, शल्कीय कोशिकाओं. होता है लिये व्याटिकल (antide) कहते हैं।
बाल का परिवर्धन (Development of Hair) : बाल एक छोटे से एपीडर्मल उत्फूलन से बनता है जो डर्मिस में नीचे धंस जाता है और उसका निचला सिरा प्यालेनुमा हो जाता है। इस प्यालेनुमा गर्त में डर्मिस फैल जाती है तथा एक रोम अंकुरक का निर्माण करती है जिसमें रक्त वाहिकाएँ होती हैं जो एपीडर्मिस के मैलपीजी स्तर को पोषण प्रदान करती हैं। शुरू में एपीडर्मी अंत:वृद्धि एक ठोस कोशिकीय डोरी के रूप में होती है जो बाद में चीरकर एक केन्द्रीय शैफ्ट बनाती है। शैफ्ट के चारों तरफ की खाली जगह को घेरे रहने वाली एपीडर्मी कोशिकाएँ एक रोम पुटक का निर्माण करती हैं जो बाल को घेरे रहता है (चित्र) रोमपुटक के आधार पर बल्ब की तरह फूली बाल की जड़ होती है जिसकी कोशिकाएँ विभाजित होकर नयी कोशिकाएँ बनाती हैं। ये कोशिकाएँ श्रृंगीय होती जाती हैं और शेफ्ट में जुड़ती जाती हैं। शेफ्ट लम्बाई में बढ़ता जाता है और त्वचा के बाहर आ जाता है। रोम पुटक की कोशिकाएँ एक पार्श्व-मुकुल के रूप में सिबेशस ग्रन्थि का निर्माण करती है। इस प्रकार बाल का परिवर्धन होता है।
पिच्छ (Feathers) – पिच्छ पक्षियों के अभिलक्षणी गुण होते हैं। ये किसी भी अन्य जन्तु में नहीं पाये जाते हैं। पिच्छ त्वचा की शृंगीय hamu अपवृद्धि होते हैं। ये हल्की, मजबूत, जल-अवरोधक संरचनाएँ होती है जो सीमान पक्षियों के शरीर के चारों ओर एक संरक्षी आवरण बनाते हैं, शरीर के ताप का कैलेम नियमन करते हैं तथा उड़ने में सहायता करते है।
संरचना (Structure ) - एक प्रारूपी कंटूर पिच्छ में एक केन्द्रीय - - अक्ष अर्थात् वृन्त होता है जिसे स्केपस (scapus) कहते हैं तथा एक चौड़ा और चपटा पिच्छ फलक होता है। स्केपस दो भागों से निर्मित होता है, इसका आधारीय भाग कैलेमस या क्विल (calamus or quill) कहलाता है। यह खोखला होता है तथा त्वचा में गड़ा रहता है। ऊपर वाला भाग ठोस रेकिस या दंड (rachis) होता है जिस पर फैला हुआ पिच्छ फलक पाया जाता है। खोखले क्विल में मज्जा (pith) भरा होता है जो पिच्छ मज्जा का सूखा हुआ अवशेष होता है। कैलेमस ऊपर और नीचे की ओर क्रमशः ऊर्ध्व नाभि (superior umbilicus) और निम्न नाभि द्वारा खुलता है। निम्न नाभि में डर्मिस से उत्पन्न प्रवर्ध डर्मल अंकुरक (dermal papilla) रिक्त होता है जिसके द्वारा पिच्छ के विकास के समय पोषक तत्त्व का वर्णक डर्मिस से पिच्छ में जाते हैं। रेकिस (rachis) मुख्य अक्ष का ऊपरी भाग बनाती है। यह ठोस व चतुष्कोणीय होती है तथा मज्जा कोशिकाओं (pith cells) से भरी होती है।
पिच्छ फलक (vane or vaxillum) - पिच्छ का पंख के समान फैला जालदार भाग होता है जो रेकिस द्वारा दो असमान भागों में विभक्त होता है। प्रत्येक भाग में असंख्य महीने सूत्र समान संरचनाएँ होती हैं जो रेकिस पर समान्तर क्रम में सघनता से लगी होती हैं; इन्हें पिच्छक या रेमाई कहते हैं। ये रेकिस पर तिरछे लगे होते हैं तथा रेकिस के ऊपरी और निचले सिरों की तरफ आकार में क्रमशः छोटे होते जाते हैं। प्रत्येक पिच्छक की दूरस्थ (distal) और समीपस्थ (proximal) सतहों पर अत्यन्त कोमल व छोटी पिच्छिकाएँ (barbules) तिरछी लगी होती हैं।
दूरस्थ पिच्छिकाओं पर महीन कंटिकाएँ या हेमुलाई (hooklets or hamuli) होते हैं तथा समीपस्थ पिच्छिकाओं के सिरों पर खाँचयुक्त सीमान्त किनारे (grooved edges) होते हैं। कई पक्षियों के कंटूर पिच्छ में कैलेमस और रेकिस के संगम का दूसरा पिच्छ पाया जाता है जिसे अनुपिच्छ कहते हैं। इसमें पिच्छ और पिच्छिकाएँ होती हैं, पर कटिकाएँ अनुपस्थित होती है। देह पिच्छ (Coverts) छोटे कंटूर पिच्छ होते हैं जिनकी कंटिकाएँ। अच्छी तरह विकसित नहीं होती है। ये देह, पंखों, टांगों और दुम को ढके रहते हैं।
परिवर्धन (Development) - कंटूर पिच्छ के परिवर्धन की प्रारम्भिक अवस्थाएँ कोमल पिच्छ जैसी होती हैं (चित्र)। कोमल पिच्छ की तरह इसमें भी डर्मल पैपिला, पिच्छ पल्प, पिच्छमूल, पैरीडर्म और अनुदैर्ध्य कटक बनते हैं। इसके बाद का कंटूर पिच्छ का परिवर्धन कोमल पिच्छ से भिन्न होता है। कंटूर पिच्छ के पिच्छ मूल के आधार पर विभेदी वृद्धि होती है जिसके फलस्वरूप मध्य-पृष्ठ भाग बाहर की तरफ बढ़ने लगता है। इस मध्यीय पृष्ठ बाहयवृद्धि के दोनों पाश्र्व समेकित होकर एक ठोस रेकिस बनाते हैं। रेकिस तेजी से बढ़ता है और अपने साथ-साथ दोनों तरफ के पिच्छकों को भी आगे ले जाता है। जैसे-जैसे पिच्छाक रेकिस पर आगे बढ़ते हैं नये पिच्छाक नीचे की तरफ दिखाई देने लगते हैं। पिच्छाकों के दोनों तरफ पिच्छिकाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। पेरीडर्म चीरकर सूख जाती है। परिवर्धनशील कंटूर पिच्छ अपने अधर तल पर मध्य रेखा पर फट जाता है ये तथा चिरता नहीं है, क्विल बनाता है। क्विल में डर्मल प्लप सूखकर मज्जा बना देता है। ऊर्ध्व और निम्न नाभियाँ वे छिद्र होते हैं जिनके द्वारा डर्मल | पल्प प्रारम्भ में डर्मल पैपीला से सतत् रहता है।
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