पक्षी प्रवासन (Bird Migration) -
अनुकूल वातावरण, भोजन और आवास की खोज में पक्षी एक विशेष अवधि के लिये एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाते हैं। इस नये स्थान पर रहते हुए जब पक्षी को भोजन की कमी महसूस होने लगती है एवं मौसम प्रतिकूल होने लगता है तो ये पुन अपने मूल स्थान को लौट आते हैं। इस घटना को प्रवजन या प्रवासन (migration) कहते हैं। पक्षियों में होने वाली यह घटना द्विपथीयं (two-way) यात्रा के रूप में सम्पन्न होती है जिसके दौरान पक्षी अपना कुछ समय अर्थात गर्मियाँ एक स्थान पर तथा सर्दियाँ दूसरे स्थान पर व्यतीत करते हैं। यह घटना कुछ पक्षियों में निश्चित ऋतु में कुछ समय के अन्तराल पर "चक्रीय क्रिया अथवा यहां से वहां की (to an fro) यात्रा के रूप में देखी जाती है। यह यात्रा जनन स्थल एवं नीडन स्थल (breeding and nesting place) से भक्षण व विश्राम स्थल (feeding and resting place) के मध्य कुछ जाति के पक्षियों की समष्टि द्वारा की जाती है।
प्रवासी और अप्रवासी पक्षी (migratory & resident birds) : पक्षियों की वे जातियां जो प्रवासन नहीं करती अर्थात वर्ष भर एक ही जगह बनी रहती हैं, अप्रवासी (resident) पक्षी कहलाते हैं। जैसे बाब व्हाईट (Bob White)। जिन जातियों के पक्षियों द्वारा प्रवासन की क्रिया की जाती है वे प्रवासी (migratory) पक्षी कहलाते हैं।
पक्षी प्रवासन के प्रकार (Types of Bird migration)
अक्षांशी प्रवासन (Latitudinal migration) -
पक्षियों के उत्तरी गोलार्द्ध से दक्षिणी गोलार्द्ध एवं दक्षिणी गोलार्द्ध से उत्तरी गोलार्द्ध की ओर के गमन को अक्षांशी प्रवास कहते हैं। शीतकाल में उत्तरी गोलार्द्ध बर्फ से ढक जाता है। शीतकाल के आरम्भ होने पर अमेरिका का गोल्डन प्लोवर (Golden plower) पक्षी सुविएलिस डोमिनिका (Pluvialis dominica ) 8000 से 12000 किलोमीटर की यात्रा करके अर्जेन्टाइना आते हैं। यहां वे लगभग 9 महीने का समय व्यतीत करते हैं। इस प्रकार ये वर्ष में दो बार ग्रीष्म ऋतु का आनन्द लेते हैं। इसी प्रकार साइबेरिया से कुछ पक्षी हिमालय के मैदानी इलाकों में आते हैं। उत्तरी अमेरिका तथा यूरेशियाई पक्षी विषुवत रेखा को पार कर दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका और भारत के ऊष्णतर भागों में जाडा बिताने आते हैं।
दिशान्तरीय प्रवास (Latitudinal migration) -
इस प्रकार का प्रवास उन पक्षियों में होता . हैं जो दक्षिणी गोलार्द्ध में रहते हैं और पूरब पश्चिम दिशा में प्रवास करते हैं जैसे पैगोटियन प्लोवर (Pagotian plower) | स्टॉलिंग पूर्वी यूरोप अथवा एशिया से एटलांटिक किनारे की ओर सर्दी से बचने के लिये आते है.
उच्चता / उदय प्रवास (Altitudinal or vertical migration) यह प्रवासन गर्मियों में ऊँचे पहाड़ों से निचली घाटियों की दिशा में होता है। अनेक भारतीय तथा विदेशी पर्वतीय पक्षियों में इस प्रकार का प्रवास देखने को मिलता है। गर्मियों में भारत के मैदानी भागों में रहने वाले पक्षी समुद्र तट से हजारों फीट ऊँचे उडते हुए हिमालय की तराई में पहुँच जाते हैं सर्दी आने पर ये पुनः मैदानों में लौट आते हैं जैसे अर्जेन्टाइना के ग्रेवेज (Grebes) व कूट्स (Coots) ए, ग्रेट ब्रिटेन के वायलट ग्रीन स्वैलो (Violet green swallow) व साइबेरिया के विलो टारमिगेन (Willo ptarmigan) आदि।
आशिक प्रयास (Partial migration) -
ऐसे प्रवासी पक्षियों में जिसमें सभी पक्षी अपने मूल निवास को छोड़कर नहीं जाते वरन कुछ पक्षी वहीं रहते हैं जैसे बार्न ओवल (Barn owls) टियोटो एला (Tyto alba), नीलकंठ (Blue birds ) आशिक प्रवासी कहलाते हैं।
ऋतुपरक प्रवास (Seasonal migration) -
अनेक पक्षी प्रजातियों में ऋतुपरक प्रवास दिखाई देता है। उदाहरण के लिये ब्रिटेन के बतासी, अवाबील तथा कोकिल पक्षी ग्रीष्म आगन्तुक होते हैं। ये दक्षिण से चलकर बसन्त ऋतु में यहां पहुँचते हैं और प्रजनन करते हैं। शीतकाल में पुनः अपने मूल स्थान अर्थात दक्षिण में चले जाते हैं। इसी प्रकार कुछ पक्षी शीत आगन्तुक होते हैं। ये शीतकाल में उत्तर दिशा से आते हैं और सर्दी व्यतीत करने के बाद पुनः उत्तर दिशा में लौट जाते हैं।
नियमित प्रयास (Regular migration) -
पक्षियों की कुछ जातियों में प्रतिवर्ष प्रवासन की क्रिया सम्पन्न होती है, यह क्रिया नियमित प्रवास (regular migration) कहलाती है।
अनियमित प्रवासन (irregular migration) अनियमित प्रवासी पक्षियों में प्रवासन की क्रिया प्रतिवर्ष सम्पन्न नहीं होती है। जैसे अमेरिका के बर्फीले प्रदेशों में रहने वाले उल्ल (Snowy owl) 3 से 5 वर्षों के बाद ही प्रवास करते हैं। दिवा प्रवासन (Diurnal migration ) वे पक्षी जो अपनी प्रवास यात्रा दिन के समय आरम्भ करते हैं, दिवा प्रवासी पक्षी कहलाते हैं। जैसे कौवा, अबाबील, रोबिन, सारस, नीलकण्ठ, बाज आदि।
रात्रि प्रवासी पक्षी (Nocturnal Migration birds ) -
वे पक्षी जो आकार में छोटे होने के कारण तथा शत्रुओं से सुरक्षा के लिये भी रात्रि में ही उड़ना पसन्द करते हैं ऐसे पक्षी रात्रि प्रवासी पक्षी कहलाते हैं। जैसे नाइट हॉक (night hawk), गौरैया, कस्तुरा आदि। मार्ग पक्षी (Birds of passage ) वे नियमित प्रवासी पक्षी जो उत्प्रवास (emigration) व आप्रवास (immigration) हेतु एक ही मार्ग का उपयोग करते हैं। ऐसे पक्षी वर्ष में दो बार बसन्त में गर्म से ठंडे प्रदेश में और शरद में ठंडे से गर्म प्रदेश में आते हुए दिखाई पड़ते हैं अतः इन्हें " मार्ग पक्षी (birds of passage )" कहते हैं।
प्रवासन क्रिया के दौरान दूरी एवं ऊँचाई (Distance and height during migration) -
दूरी पक्षियों में प्रवासन के दौरान तय की जाने वाली दूरी स्थानीय परिस्थितियों एवं जाति के अनुरूप बदलती रहती है। हिमालयी बर्फीला तीतर (Partridges) पहाड़ से नीचे मैदान में कुछ सौ फीट अर्थात एक-दो किलोमीटर की दूरी तय करता है। चिकाडीज नामक चिडिया लगभग 8000 फीट की दूरी इसी प्रकार तय करती है। लम्बी दूरी तय करने वाली लगभग 100 जातियाँ प्रमुख हैं। बर्लिन के स्टर्लिंग (Sterlings) लगभग 2000 किलोमीटर, स्टार्क (Storks) यूरोप से दक्षिणी अफ्रीका के मध्य 5000 किलोमीटर की यात्रा करते हैं। उत्तरी अमेरिका के नाइट हॉक (night hawk ) एवं बार्न आउल (Barn owl) लगभग 11200 किलोमीटर की दूरी तय करते हैं। कुछ पक्षी जैसे स्निप्स (Snipes) ए व सेन्स पाइपर (sand piper) 12800 किलोमीटर की यात्रा करते हैं। गोल्डन प्लोवर (Golden plower) बिना रुके लगभग 3840 किलोमीटर लम्बी उडान हडसन की खाड़ी से दक्षिणी अमेरिका तक भरते हैं। आर्कटिक टर्न (Arctic tern) सबसे लम्बी दूरी लगभग 17600 किलोमीटर की यात्रा तय कर अपने गंतव्य स्थान तक पहुँचते हैं एवं इतनी ही दूरी तय कर वापस भी जाते हैं। (कुल 184 ऊंचाई कुछ छोटी चिडियाएं 5000 से 15000 फीट की ऊंचाई पर 3 350/367 अधिकांश पक्षी 3000 फीट की ऊंचाई पर देखे गए है। कुछ पक्षी 20000 या इससे भी अधिक ऊंचाई पर हिमालय तथा इंडीज की श्रृंखलाओं को पार करते है। बतख व गीज 1500 मीटर से 2700 मीटर की ऊंचाई पर उड़ान भरते है।
गति (Velocity) -
प्रवास के दौरान पक्षी अपनी सामान्य उड़ान की अपेक्षा तेज गति से उड़ते है जैसे कौआ, फिन्च आदि 45 कि. मी. प्रति घंटा की गति से तथा छोटी सॉंग बर्ड (Song Bird) 32-64 किमी. प्रति घण्टा की रफ्तार से उड़ती है। बतख व गीज में गति 64-96 किमी प्रति घण्टा होती है। भारतीय बतासी लगभग 320 किमी प्रति घंटे की गति से उड़ती है। इनमें इतनी तीव्र गति देह के छोटे आकार के फलस्वरूप ही संभव हो पाती है।
नियमितता (Regularity) -
प्राय: प्रवासी पक्षी निश्चित मार्ग पर रेखाओं में उड़ते हैं। समुद्री पक्षी समुद्री मार्ग अपनाते है जबकि कुछ पक्षी तटीय मार्गों से प्रवास यात्रा करते है तथा अनेक विपदाओं के बावजूद भी प्रवासी पक्षी उत्पवास व अप्रवास करते समय अत्यधिक नियमित होते है। जैसे पर्पिल मार्टिन्स (Purple martins) हमेशा अपने स्थान पर हर मौसम में निश्चित दिन ही पहुँचती है। प्रवासी पक्षी अधिकतर निश्चित स्थान पर ही गमन करते देखे गए है। उदाहरण के लिए दक्षिणी अफीका में शीत ऋतु व्यतीत करने के उपरान्त स्वैलो (Swallow) यूरोप में पूर्व के निश्चित स्थानों पर, यही तक कि विशिष्ट वरक्ष पर ही घोंसला बनाते है।
प्रवासन के कारण (Causes of Migration)
पक्षी प्रवासन के मुख्य कारण निम्नलिखित माने गए है-
(i) भोजन की कमी (Scarity of Food) -
कुछ पक्षी एक जगह पर भोज्य सामग्री की कमी के फलस्वरूप प्रवासन करते है।
(ii) जलवायु में परिवर्तन (Change in Weather) -
तापक्रम कम होने के कारण या ताप अधिक होने के कारण अथवा जलवायु में परिवर्तनों के अनुरूप भी पक्षियों में प्रवासन की क्रिया होती है।
(iii)वातावरणीय उद्दीपन (Environmental Stimulus) -
वातावरणीय उद्दीपन जैसे सूर्य की तीव्रता में कमी, गर्मी की तीव्रता, सूखा, ठंड, तूफानी मौसम, वायुदाब आहार की कमी जैसे बाह्य कारक पक्षियों को अनुकूल स्थल की ओर प्रवास करने को प्रेरित करते है।
(iv)जननांग उद्दीपन (Gonadal Stimulus) -
पक्षियों के जननांगों का परिपक्व होना भी महत्वपूर्ण कारक है। पक्षियों के प्रवास यात्रा पर निकलने की प्रेरणा व आन्तरिक प्रजनन तंत्र में गहरा सम्बन्ध हैं किन्तु यदि पक्षी के जननांगों को निकाल भी दिया जाये तो भी वह पक्षी प्रवास यात्रा आरम्भ करता है। प्रवास यात्रा की प्रेरणा का सम्बन्ध पीयूष ग्रन्थि के अग्र भाग से स्त्रावित होने वाले" गोनेडोट्रोपिक हारमोन से है। यह हारमोन जननांगों के अतिरिक्त अन्य अंगों की क्रियाओं को भी प्रभावित करता है जैसे- वसा का निर्माण व भण्डारण प्रवास यात्रा के दौरान खर्च होने वाली ऊर्जा इसी वसा से प्राप्त होती है। इसी कारण अनेक पक्षी कई दिनों तक बिना खाए-पिए निरन्तर काफी ऊँचाई पर लम्बी दूरी की यात्रा करते है।
(V)थाइरॉइड परिकल्पना (Thyroid Hypothesis) -
थायरॉइड परिकल्पना के अनुसार थायरॉइड ग्रन्थि इस समय अधिक मात्रा में थायरॉक्सिन हारमोन स्त्रावित कर दैहिक उपापचयी क्रियाओं में ऐसे परिवर्तन लाते हैं कि पक्षी प्रवास यात्रा के लिए तैयार हो जाते हैं। पीयूष ग्रन्थि व थायरॉइड ग्रन्थि के हारमोन पक्षियों को इस प्रेरित करते है।
(vi)पीयूष ग्रन्थि परिकल्पना (Pituitary Gland Hypothesis) -
वायुमण्डल में प्रकाश को मात्रा में वशद्धि होने पर पीयूष ग्रन्थि उत्तेजित होकर अधिक मात्रा में गोनेडोट्रोपिक हारमोन स्त्रावित करने लगती है। बंसत ऋतु में प्रवासन करने वाले पक्षी इसके प्रमाण है।
दिशा निर्धारण (Navigation)-
पक्षियों को किस प्रकार अपने मार्ग का ज्ञान हो पाता है इस बारे में अनेक मत प्रस्तुत किए गए है किन्तु निश्चित तौर पर यह क्रिया किस प्रकार होती है इस बारे में हमारा ज्ञान अधूरा है। यह सत्य है कि प्रत्येक प्रजाति का पक्षी प्रतिवर्ष एक निश्चित मार्ग से यात्रा कर अपने गंतव्य स्थान पर पहुँचता है। कैमेर (Kramer) ने बताया कि जर्मन पक्षी सूर्य से दिशा निर्देश प्राप्त करते हैं जो पक्षी दक्षिण दिशा की ओर उड़ रहा होता है, प्रातः अपने बांयी ओर सूर्य को देखता हुआ आगे बढ़ता है। दोपहर तक ऐसा ही होता है किन्तु दोपहर बाद सूर्य उसके दांयी ओर होता है। इस तरह पक्षी सूर्य की स्थिति को मस्तिष्क मे रख कर दिशा निर्देश प्राप्त करता है। शायद यही कारण है कि आकाश में बादल छा जाने पर प्रवासी पक्षी कुछ समय के लिए दविग्भ्रमित हो जाते है क्योंकि इनमें सूर्य कम्पास बुद्धि होती है। सायेर (Sauer) के निष्कर्ष के अनुसार रात्रि में उड़ने वाले पक्षी चन्द्रमा व तारों की मदद से दिशा निर्देश प्राप्त करते हैं। पक्षियों में दिशा निर्धारण की जन्मजात क्षमता होती है अर्थात् यह एक अनुवांशिक गुण है। माता-पिता से दूर रखे जाने पर भी पक्षियों के शिशु सही दिशा में प्रवास यात्रा करते है। पक्षी उड़ान के समय मार्ग में पड़ने वाले स्थलों, नदियों, घाटियों, समुद्री तट, पहाड़ों की श्रृंखलाओं को भू-चिन्ह मानते हुए उड़ते है। अतः दिशा भ्रमित नहीं होते किन्तु अनेक पक्षी रात्रि को प्रवास यात्रा करते है जब ये भू-चिन्ह इन्हें दिखाई नहीं देते। वायु धाराओं एवं पश्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का दिशा-निर्देश का स्त्रोत माना जाता है। रीट्रेसमेंट मत (Retracement theory) के अनुसार पक्षी अपनी स्मशति, पेशी संचालन व अर्ध वश्लाकार नलिकाओं के माध्यम से यात्रा के मार्ग की हर संभव जानकारी प्राप्त कर लेते है। अचेत अवस्था में पक्षियों को अत्यधिक दूरी पर अनजान स्थानों छोड़ने पर उनके सचेत होते ही पुनः अपने गंतव्य स्थल की ओर लौटते हुए देखा गया।
प्रवासन की उपयोगिताएँ (Advantages of migration) -
पक्षी प्रवासन के अनेक लाभ है जैसे
(1) बेहतर जलवायु
(2) पौष्टिक आहार
(3) आवास की सुविधा
(4) प्रजनन हेतु उपयुक्त स्थान की प्राप्ति आदि।
यदि ये एक ही स्थान पर रहते है तो बढ़ती हुई संख्या हेतु भोजन की कमी हो सकती है। ये स्पर्धा स्वयं वयस्क व शिशु पक्षियों के लिए घातक हो सकती है। शिशुओं के लिए इन्हें इस समय प्रोटीन प्रचुर आहार की आवश्यकता होती है जो कोटों के रूप में प्राप्त होता है। बंसत ऋतु में इन्हें ये नए आवास स्थल पर प्राप्त होते है। प्रवासन के समय गर्मियों के बड़े दिनों में पक्षी को खाद्य सामग्री एकत्रित करने हेतु अधिक समय मिलता है। वर्ष में दो बार आवास बदलने के कारण प्रवासी पक्षी दो स्थलों का पूरा लाभ उठाते है। प्रवासी स्थल पर इन्हें खाद्य सामग्री व घोंसला बनाने की सामग्री का भरा-पूरा क्षेत्र मिलता है। प्रवासी स्थल पर इन्हें जीन विनिमय के अवसर भी प्राप्त हो जाते है। प्रवास यात्रा के दौरान इन्हें विषम परिस्थितियों भूख प्यास, आधी तूफान आदि का सामना करना पड़ता है, अतः इनमें अधिक सहनशीलता व अनुकूलन की क्षमता का विकास होता है। प्रवास के कारण पक्षियों का भौगोलिक वितरण भी संभव हो पाता है। इनकी छोटी-छोटी समष्टियों में अनुवांशिक भिन्नता, उत्परिवर्तन जैसे कारकों के सक्रिय होने की संभावनाएं बनती है जो उद्विकास हेतु आवश्यक होती है। प्रवासी पक्षियों की साहसिक यात्राएं मनुष्य को भी प्रवास हेतु करती है।
प्रवासन के नुकसान (Disadvantages of migration) -
प्रवास यात्रा के दौरान इन्हें विषम परिस्थितियों जैसे भूख, प्यास, आधी, तूफान आदि का सामना करना पड़ता है जिसके कारण कई बार ये मौत का शिकार हो जाते है। अतः प्रवासन कई बार पक्षियों के लिए खतरनाक साबित होता है। प्रवासी पक्षियों के लिए मनुष्य द्वारा भी संकटजनक स्थिति उत्पन्न होती है जैसे बिजली के खंभे तथा दूरदर्शन के टॉवर इत्यादि भी कई बार इनकी मौत का कारण बनते है, खासकर रात्रिचर प्रवासी पक्षियों के लिए। अतः ये प्रवासी पक्षी अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच पाते हैं।
भारत में प्रतिवर्ष लगभग 350 प्रजातियों के पक्षी विदेशों से कुछ महीनों के लिए यहां आते है। अबाबील, सीकपर मुर्गाबियां फुदकी, पथर चिरौता आदि पक्षी प्रत्येक वर्ष शीतकाल में यहां आते है। यहां का अनुकूल मौसम इनके लिए उपयोगी होता है। तीन चार माह झील के निकट त्यतीत कर ये पुनः अपने मूल स्थानों को लौट जाते है। इसी प्रकार बहुत सर्दी होने पर कृमीर गढवाल, सिक्किम जैसे भागों से भी पक्षी उड़कर गर्म व अनुकूल स्थानों की ओर आते है। प्रवासी पक्षियों में साइबेरियन क्रेन का विशेष स्थान है। शीतकाल में यह पक्षी साइबेरिया जैसे ठंडे प्रदेश से उड़कर हजारों मील की दूरी तय कर भारत में आते है। भारत में प्रतिवर्ष हजारों प्रवासी पक्षी (migratory birds ) दूसरे देशों से मेहमान के रूप में आते है। एक निश्चित अवधि तक रह कर ये अपने देश को लौट जाते है। भारत में अधिकतर पक्षी रूस व मध्य एशिया से आते है। राजस्थान के भरतपुर में स्थित घना पक्षी विहार व दिल्ली के चिडियाघर में ऐसे अनेक मेहमान पक्षी देखे जाते है।
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