प्रवास प्राणियों द्वारा की जाने वाली प्रक्रिया है जो इनकी विभिन्न आवश्यकताओं जैसे- भोजन, उपयुक्त स्थान, जलवायु, जननिक क्रियाओं की पूर्ति हेतु की जाती है। यह लगभगब सभी जीवधारियों में होता है।
मछलियों के द्वारा की जाने वाली क्रियाओं में अभिगमन क्रिया विशेष महत्त्व एवं आकर्षण रखती है। कुछ मछलियाँ अपनी प्रादेशिक सीमा से भोजन व जनन हेतु भिन्न प्रवास स्थल तक जाती हैं। यह प्रवास निम्न प्रकार का होता है-
1. समुद्र जल से स्वच्छ जल की ओर,
2. स्वच्छ जल से स्वच्छ जल की ओर,
3. स्वच्छ जल से समुद्र जल की ओर,
4. जल स्रोत में सतह से गहराई की ओर,
मछलियों में प्रवास के कारक - अभिगमन क्रिया जनन व भोजन से संबंधित होती है जिसके लिए जैविक, भौतिक व रासायनिक कारक उत्तरदायी होते हैं। भौतिक कारकों में जल की गहराई, ताप, दाब व प्रकाश की मात्रा, जलधारा, ज्वार आविलता प्रमुख है। जबकि रासायनिक कारकों में लवणता PH गंध, स्वाद व प्रदूषक तत्त्व प्रमुख होते हैं। जैविक कारकों में स्मृति, रक्त दाब, भोजन, लैंगिक परिपक्वता, अन्तःस्रावी स्रावण व कार्यिकीय परिवर्तन सम्मिलित होते हैं। वैज्ञानिकों द्वारा अनेक कारकों से विभिन्न प्रकार के परस्पर अन्योन्य क्रिया करने से व अपने वास्तविक स्थलों पर लौटने की प्रवृत्ति का इस समय उग्र होना संभवतः प्रवासन हेतु कारण बनते हैं।
अभिगमन करने वाली मछलियों के निम्न प्रकार हैं-
1. समुद्रापगामी मछलियाँ - समुद्र जल से मछलियाँ स्वच्छ जलीय नदियों आकर अण्डे देती हैं। उदाहरण-स्ट्रजियन, एटलांटिक साल्मन, ऐसीपेन्सर, साल्मन, हिल्सा आदि प्रमुख है।
2. स्वच्छ जलगामी मछलियाँ - स्वच्छ जल में रहने वाली मछलियाँ, स्वच्छ जल में ही लम्बी दूरी की यात्राएँ करती हैं। उदाहरण-कॉर्प, ट्राउटस, मछलियाँ अण्डे देने के लिए उचित स्थान तलाश करती हैं।
3. समुद्रगामी मछलियाँ - ऐसी मछलियाँ समुद्र में अण्डे देने के लिए लम्बी दूरी की यात्राएँ करती हैं इसके पश्चात अशन स्थलों की ओर लौट आती है। उदाहरण - हेरिंग्स, क्लूपिया, मैकेरल्स, स्काम्बर व टयूनास आदि ।
4. समुद्राभिगामी मछलियाँ-ये मछलियाँ स्वच्छ जल में समुद्री जल में जाकर अण्डे देती हैं। उदाहरण-रैल, एंगुइला एंगुइला व अमेकिरन ईल एंगुइला रॉस्ट्रटा आदि ।
समुद्रापगामी व समुद्राभिगामी अभिगमन भिन्न पारिस्थितिक वातावरण में सम्पन्न होते हैं। मछलियाँ अनेक कठिनाइयों जैसे विपरीत जलधारा प्रवाह, | वायुमंडलीय दाब, श्वसनीय गैसों की उपलब्धता, तापक्रम, शिकारी प्राणियों से | सुरक्षा, भौगेलिक अवरोधों, पहाड़, चट्टानें, झरने, समतलीय भागों का सामना करते हुए हजारों किलोमीटर की दूरी तय करती हैं।
उदाहरण-समुद्रापगामी प्रवासन-अभिगमन को स्पष्ट करने हेतु साल्मन हिल्सा मछलियों पर प्रयोग कर प्रमाण जुटाये गये हैं। एटलांटिक साल्मन प्रजनन काल के समय दिसम्बर माह में अण्डे देने हेतु हजारों किलोमीटर की यात्रा कर समुद्र से नदी के जल में तैरकर उपयुक्त स्थान की तलाश करती है। इस अवधि में भोजन ग्रहण नहीं करती है। इसलिए इनके वजन में कमी आती है। साल्मन का शरीर चाँदी के समान चमकीला, रंग लाल-भूरा तथा त्वचा मोटी व स्पंजी हो जाती है। ये जनन काल में जनन स्थलों में एकत्रित होकर जोड़े बनाती हैं। मादा के द्वारा नदी के तल पर प्याले के आकार के गड्ढे बनाये जाते हैं जिसमें स्पानिंग की क्रिया होती है। इस क्रिया के बाद साल्मन समुद्र में लौट आते हैं तथा पुनः भोजन ग्रहण करना शुरू करते हैं। इनके रंग सामान्य हो जाते हैं। इस कार्य हेतु इसकी देह में संग्रहीत भोज्य पदार्थ वसा के रूप में एकत्रित किये जाते हैं। साल्मन मछली में अभिगमन व्यवहार को स्पष्ट करने हेतु निम्न मत प्रस्तुत किये गये हैं-
1. प्रजनन काल में उपापचयी क्रियाएँ तीव्र होना ।
2. जल में CO, की सान्द्रता बढ़ना।
3. रासायनिक संवेदों के प्रति सुग्राह्यता उत्पन्न होना ।
4. लारसन एवं हेसलर के अनुसार साल्मन में घरेलू एवं अभिगमन प्रदेशों में गंध के प्रति सुग्राह्यता उत्पन्न होती है।
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