Flight Adaptation Of Birds पक्षियों में उड्डयन अनुकूलन।

पक्षीयों में अपने को स्वयं के वातावरण के अनुकूल परिवर्तित करने या ढालने की क्षमता पायी जाती है जिसे अनुकूलन ( adaptation) कहते हैं। ये अनुकूलन शारीरिक रचना, कार्यिकी एवं स्वभाव आदि से संबंधित होते हैं। पक्षियों के वास स्थान एवं उडने के गुण के कारण इनमें अन्य वर्गों के प्राणियों की अपेक्षा अत्यधिक अनुकूलन प्रभाव दिखाई देते हैं। यंग (Young, 1958) ने पक्षियों को " वायु का स्वामी (Master of Air)" कहा है क्योंकि पक्षियों में कोई अंग या तन्त्र ऐसा नहीं है जो वायवीय जीवन हेतु अनुकूलित न पाया जाता हो। पक्षियों में वायवीय जीवन हेतु निम्नलिखित अनुकूलन पाये जाते हैं, जिन्हें दो वर्गों में विभाजित किया गया है -



(अ) आकारिकीय अनुकूलन (Morphological adaptations)


(ब) शारिरीय अनुकूलन (Anatomical adptations)


आकारिकीय अनुकूलन (Morphological adaptations)


देह की आकृति ( Body shape ) - पक्षियों की देह का आकार धारारेखित या नौकाकार एवं तर्करूपी होता है। इससे पक्षी सुगमता के साथ बिना किसी विशेष प्रयास के वायु में उड़ सकते है।


सुगठित देह (Compact body) - पक्षियों की देह का पश्श्ठतः दश्ढ एवं हल्का तथा अधरतः भारी एवं संहत होता है जिस कारण ये वायु में पूर्ण संतुलन बनाने में सक्षम होते हैं। डैनों का वक्ष की पूर्ण ऊँचाई पर संलग्न पाया जाना, फेफडों व वायु कोषों की उपस्थिति, प्रभावशाली पेशियों का स्टर्नम पर संलग्न होना एवं पाचन तंत्र का देह के मध्य अक्ष में स्थित होना आदि लक्षण इनके गुरुत्वाकर्षण बल को कम प्रभावी बनाते हैं।


देह पर पिच्छों का आवरण (Body covering of feathers) - पिच्छ प्रकृति की अनुपम कृति हैं। ये पक्षियों की त्वचा पर विकसित होते हैं। ये चिकने, निकटतः व्यवस्थित तथा पीछे की ओर दिष्ट होते हैं। इनकी देह पर उपस्थिति ही पक्षी की आकृति को अधिक धारारेखित बनाती है ताकि वायु में उड़ान भरते समय प्रतिरोध नगण्य हो । पिच्छ हल्के होते हैं तथा इनके बीच-बीच में • वायु फँसकर पक्षी को कम्बल की भाँति गर्मी का आभास कराती है। पिच्छ तापरोधी (heat resistance) होते हैं। ये देह की ऊष्मा को नष्ट नहीं होने देते। अतः पक्षी अत्यधिक ठंडे स्थानों एवं ऊँचाईयों वाले स्थानों में भी पाये जाते हैं। इनके द्वारा देह का तापक्रम एक सा बनाये रखा जाता है। ये हल्के होते हैं अतः जन्तु को वायु में उड़ने व शरीर व परों के बीच की वायु शरीर को उल्लावकता (buoyancy) प्रदान करने में सहायक होते हैं। पक्षी की पुच्छ पर उपस्थित पंख पिच्छ (wing feathers) मिलकर एक चौडी व सुदश्ढ सतह बनाते हैं जो वायुयान (propeller ) की भाँति पक्षी को आगे धकेलते हैं। के पंखे


अग्रपादों का पक्षों में रूपान्तरण (Fore limbs modified into wings) - पक्षियों में अग्र पाद शक्तिशाली प्रणोदी अंगों (propelling organs) अर्थात पक्षों या पंखों (wings) में रूपान्तरित होते हैं तथा ये विशेष प्रकार की उड्डयन पेशियों एवं पिच्छों से युक्त होते हैं। पिच्छ अनेक प्रकार के होते हैं जो उड़ान के दौरान पक्षी की देह को वायु में थामे रहने, आगे धकेलने, इच्छित दिशा में मुड़ने जैसी क्रियाओं में सहायता करते हैं। पिच्छों की आकृति के कारण ही पक्षी उडान भरने, नीचे उतरने, अधिक ऊँचाई पर उड़ने या उतरने जैसी क्रियाएँ करने में सक्षम होते हैं। चोंच (Beak) - पक्षियों में मुख श्रशंगीय चोंच के रूप में बढा रहता है। चोंच के द्वारा पक्षी वस्तुओं को पकड़ने, उठाने, छाँटने जैसे कार्य भी करता है। चोंच घोंसले बनाने, भोजन करने एवं चूजों को पोषण देने के कार्य बखूबी निभाती है।

लोचदार ग्रीवा एवं शीर्ष (Mobile neck & head) - सामान्यत: पक्षियों में लम्बी एवं लचीली ग्रीवा पाई जाती है जो कि पक्षी को भोजन एवं जल तक पहुँचाने में सहायक होती है। यह देह के पिच्छों को संवारने घोंसला बनाने, आक्रमण करने व स्वयं की सुरक्षा करने में भी सहायक होती है। सिर इसके पश्ष्ठतः संलग्न होता है। अतः सिर को चारों ओर घुमाने में इसकी भूमिका प्रमुख होती है।

द्विपादिक गमन ( Bipedal locomotion) - पक्षियों में अग्रपाद पक्षों में रूपान्तरित होते हैं। पश्य पाद कुछ आगे की ओर स्थित होते हैं जिन पर पूरी देह का भार होता है। ये देह का सन्तुलन बनाने के साथ-साथ सतह पर चलने का दायित्व भी निभाते हैं। जल में रहने वाले पक्षियों में पश्य पाद तैरने हेतु चप्पू की भाँति कार्य करते हैं या इनकी अंगुलियों के मध्य जाल पाया जाता है। टाँगें देह की अपेक्षा कमजोर दिखाई देती हैं किन्तु सुदश्ढ व सुगठित होती है एवं देह का पूरा भार वहन करती हैं।

छोटी पुच्छ (short tail & tail feathers) - पक्षियों में पुष्ट छोटी व पेशीय होती है। इस पर श्रश्खलाबद्ध पुच्छपिच्छ (rectrices) संलग्न होते हैं, ये हल्के किन्तु दश्ढ़ होते हैं एवं पंखे (fan) की भाँति व्यवस्थित होकर रडर (rudder) की तरह फैल कर पक्षी को उतरने (steering) में मदद करते हैं। इनके द्वारा ही अचानक रूकने व बैठने के दौरान सन्तुलन बनाने की क्रिया की जाती है।

अध्यावरण (Integument ) - पक्षियों में त्वचा देह से ढीले रूप में संलग्न रहती है। यह उड़ान हेतु उपयुक्त लचीलापन प्रदान करती है। कंकालीय पेशियों को संकुचन एवं आकुचन करने हेतु इस प्रकार का अध्यावरण सुविधाजनक होता है। इस पर पिच्छ व शल्क पाये जाते हैं किन्तु जलीय वाष्पन को रोकने हेतु ग्रन्थियाँ नहीं पाई जाती।


शारीरीय अनुकूलन (Anatomical adaptations )

अन्त: कंकाल (Endoskeleton ) - पक्षियों में अन्तः कंकाल हल्की व सघन अस्थियों से बनी होता है। कुछ अस्थियों में तो वायुकोष प्रवेशित होते हैं। अस्थियों में सघनता हेतु समेकन (fusion) की क्रिया देखी जाती है।

(i) पक्षियों में खोपड़ी या कपाल हल्की व अपेक्षाकृत कम अस्थियों से बना होता है। ये संयुक्त होकर अस्थिल कोष (bony capsule) बनाती है। जबड़ों व दॉतों के स्थान पर हल्की श्रृंगीय चोंच पाई जाती है। नेत्र कोटर बडे होते हैं। दोनों नेत्र कोटरों के मध्य अस्थि की एक पतली छड पाई जाती है।

(ii) कशेरूक दण्ड सुदश्ट होता है। वक्ष कशेरूक अधिक होते हैं इनके मध्य सेडल सन्धियाँ (saddle joints) पायी जाती हैं जो ग्रीवाको लचीला बनाते हैं। ग्रीवा द्वारा पक्षी अपने सामने का भाग सिर को 1800 तक घुमा कर देख सकता है एवं चोंच द्वारा पिच्छ प्रसाधन की क्रिया कर सकता है। अन्तिम कक्षीय कृारूक को छोड़ शेष संयुक्त होते हैं जो एक अक्ष बनाते हैं व उडान के समय दश्ट आलम्बन प्रदान करते हैं। अन्तिम वक्षीय कारूक, लम्बर, सेक्रल व कुछ पुच्छ कृारूक मिलकर सिनसेक्रम ( synsacrum ) बनाते हैं। यह गर्डर का कार्य करती है एवं श्रोणी मेखला को साधती है जिस पर पूरी देह का भार होता है। 

(iii) शेष पुच्छ कारूक मिलकर पाइगोस्टाइल (pygostyle) बनाते हैं जिस पर पुच्छ पंख संलग्न रहते हैं।

(iv) पसलियाँ चपटी होती हैं। इनमें केपिटुलर ट्यूबलर प्रवर्गों के अतिरिक्त एक अन्य प्रवर्ध भी उपस्थित रहता है। वक्ष पसलियों तथा स्टरनल पेशियों के मध्य दृढ संबंध पाया जाता है।

(v) पेशियों के जुड़ने हेतु पसलियाँ पर्याप्त आधार बनाती हैं । उडनशील पक्षियों में स्टरनम बडा व नौतल (keel) चौड़ा होता है जिस पर उड़ान पेशियों के जुडने हेतु स्थान उपलब्ध रहता है।

(vi) अस मेखला (pectoral girdle) सुदश्ढ होती है। इसके अर्धांश 900 से कम का कोण बनाते हुए जुडे रहते हैं। क्लेविकल व इन्टरक्लेविकल अस्थियाँ समेकित होकर फरकुला (furcula) का निर्माण करती है।

(vii) अग्र पाद पक्षों में रूपान्तरित हो गये हैं। इनमें केवल तीन-तीन अंगुलियाँ समेकित अवस्था में पाई जाती है जिन पर पिच्छ संलग्न होते हैं। 

(viii) पश्य पाद सुदृढ होते हैं। इनमें दूरस्थ टारसल्स टारसोमेटाटारसस बनाते हुए एवं निकटस्थ टारसल्स टिबिया टारसस बनाते हुए पाई जाती है जिससे द्विपादिक गमन में सहायता मिलती


बलिष्ठ उड्डयन पेशियाँ (Large muscles of flight) - उड़ने वाले पक्षियों में उड्डयन पेशियाँ अत्यधिक विकसित होती हैं ये देह के भार का लगभग 50% भाग बनाती है। छाती पर स्टरनम की नोत्तल या कील से लगी अवनमनी (depressing) तथा उच्चालक (elevator), पेशियाँ, वश्हत अंस पेशी या पेक्टोरेलिस मेजर (pectoralis major ) तथा पेक्टोरेलिस माइनर (pectoralis minor) अधिक विकसित होती है। ये देह के पंखों को क्रमशः नीचे करने एवं ऊपर उठाने का कार्य करती है। जबकि पीठ से लगी पेशियाँ अल्प विकसित होती हैं।


पक्षिसाद की क्रिया (Perching mechanism) - पक्षियों में पक्षिसाद की किया अनूठी होती है। जब पक्षी डाल पर बैठता है तो पिछली टाँगे झुकती हैं जिसके फलस्वरूप टारसोमेटाटारसल (Tarsometatarsal) अस्थियों के बीच की मीसोटार्सल सन्धि आगे की ओर झुक जाती है। इस कारण चारों अंगुलियों से जुड़ी आकोंचनी कण्डराऐं (flexor tendons) खिंच जाती है। यह खिंचाव पेरानियस तथा फ्लेक्सर परफोरेन्स को प्रभावित करता है। इन पेशियों के सिकुडने से अंगुलियाँ पेड़ की टहनी या शाखा पर झुक जाती है एवं इसे कस कर पकड़ लेती हैं। इस प्रकार पक्षी पतले से तार या रस्सी पर बैठकर भी विश्राम कर सकता है अथवा निद्रा ले सकता है।


नियततापी (Warm bloodedness) - पक्षी नियततापी होते हैं अर्थात इनकी देह का तापक्रम स्थिर (400-600C) बना रहता है। यह तापक्रम अन्य पक्षियों की अपेक्षा अधिक होता है। नियत व उच्च तापक्रम इनके उड़ने हेतु आवश्यक होता है ताकि अधिक ऊँचाई व कम ताप वाले में भी पक्षी क्रियाशील बने रहे।


पाचक तंत्र (Digestive System) - इनमें उपापचय की दर अधिक होती है, भोजन माँग अधिक रहती है व पाचन शीघ्र होता है। इनकी आहारनाल में उपस्थित अन्नपुट (crop) संचायक का कार्य करती है तथा पेषणी (gizzard) में भोजन टुकडों में विभक्त किया जाता है। इनमें मलाशय हमसित होता है, अतः अपाच्य भोजन देह में संग्रहित नहीं किया जाता, विष्ठा तुरन्त देह से निष्कासित की जाती रहती है। इस कारण इनकी देह का भार भी नहीं बढता अतः उडान में सहायता मिलती है।


श्वसन तन्त्र (Respiratory system) - पक्षियों में उपापचय की क्रियाएँ तीव्र होती हैं अतः इन्हें ऑक्सीजन की भी अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है। इस कारण इनका श्वसन तन्त्र अधिक विकसित होता है। फेफडों में अतिरिक्त वायु कोष (air sacs) भी पाये जाते हैं। अस्थियों व अन्तरांगों के बीच फैले रहते हैं। ये फेफड़ों में वायु के प्रवेश व निकास के समय ऑक्सीजन उपलब्ध कराते हैं। इनके कारण देह में उत्प्लावकता ही है। आन्तरिक स्वेदन द्वारा वायु कोष देह के तापक्रम का नियमन भी करते हैं । पक्षियों में फेफड़े सीस बाहर निकालते समय पूरे रिक्त होते हैं अतः प्रभावी श्वसन किया सम्पन्न होती है।


परिवहन तन्त्र (Circulatory System) - पक्षियों में हृदय बडा व दक्ष होता है। यह चतुर्कक्षीय होता है। हृदय में द्विपरिसंचरण (double circulation) पाया जाता है। ऑक्सीकृत व अनॉक्सीकृत रक्त पश्थक-पश्थक रहते हैं। लाल रक्ताणुओं में मोग्लोबिन की मात्रा अधिक होती हैं जो ऑक्सीजन वहन करने की क्षमता को बढाती है। उपापचय की क्रियाओं के तीव्र होने के साथ-साथ ऑक्सीजन की आपूर्ति पर्याप्त होनी चाहिए इसके लिये परिवहन तन्त्र दक्ष होता है।


जनन अंग (Reproductive Organs) - पक्षियों में प्रजनन की क्षमता पर्याप्त होती है । यद्यपि देह का भार कम करने की दशष्टि से इनमें केवल एक ही बांया अण्डाशय (ovary) व बॉयी अण्डवाहिनी पायी जाती है। ये अण्डे देते हैं अतः शिशुओं का भार वहन नहीं करते । पक्षियों में पैतश्क रक्षा का गुण पाया जाता है। प्रभावी उत्सर्जन (Uricotelic Excretion) - पक्षियों में मूत्राशय नहीं पाया जाता है अतः मूत्र देह का भार नहीं बढाता । उत्सर्जन तरल से जल वश्क्क नलिकाओं के हेनले के लूप भाग द्वारा पुनः अवशोषित कर लिया जाता है। अवस्कर के कोप्रोडियम (coprodaeum) भाग में भी जल अवशोषण की क्रिया होती है। उत्सर्जी पदार्थ अर्थ ठोस यूरिक अम्ल व यूरेट्स के रूप में देह से निष्कासित किया जाता है।


मस्तिष्क (Brain) - पक्षियों में मस्तिष्क बडा एवं अत्यधिक विकसित होता है। इसमें सन्तुलन, पेशी समन्वय, एकाग्रता, अधिगम की क्षमता उन्नत होती है। सेरीबेलम व सेरीब्रम अत्यधिक विकसित होते हैं।


संवेदांग (Sense Organs) - पक्षियों का दशष्टिज्ञान अत्यधिक विकसित होता है। इनमें नेत्र व दशष्टि बडे व अधिक विकसित होते हैं जो पक्षी को बुद्धिमान, चतुर एवं चालाक जन्तु के रूप में सफल बनाते हैं।

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